शिक्षा विभाग का यह भारी-भरकम बजट चौंकाता जरूर है लेकिन इससे भी ज्यादा हैरानी की बात ये है कि इस बजट में से हर स्कूल के हिस्से सालाना 25 हजार रुपए से भी कम राशि आती है। इस बजट का करीब 85 फीसदी हिस्सा यानि 33 हजार करोड़ रुपए तो विभाग के अधिकारी-कर्मचारी और शिक्षकों के वेतन-भत्तों पर ही खर्च हो जाते हैं।
इसके बाद 63 हजार स्कूलों के इंफ्रास्ट्रक्चर, कंप्यूटर, साइंस लैब, कमरों की मरम्मत सहित अन्य सुविधाओं के लिए महज 5.7 हजार करोड़ रुपए बचते हैं। इसी का नतीजा है कि बारिश में टपकती छतें, जर्जर दीवारें, उखड़े फर्श, कबाड़ से भरे बदबूदार कमरे आज हमारी स्कूलों की नियति बन चुके हैं। कहने को शिक्षा विभाग का बजट राज्य के अन्य सभी विभागों से ज्यादा है लेकिन इसमें से यदि वेतन-भत्तों को निकाल दिया जाए तो हर छात्र को सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए सरकार सालाना 200 रुपए भी नहीं देती।